शीर्षक:इंद्रधनुष
शीर्षक:इंद्रधनुष
इंद्रधनुष सी शब्दावली आकर्षित करती मन को
मानो प्रकृति ने श्रृंगार किया व्योम का सतरंगा सा
मेरे शब्दों के उम्मीदों की दहलीज पर,
हरे भरे पेड़ और अक्सर खिलते फूल
अभिलाषाओं के पुष्प, मेरे शब्दों की उम्मीद
मेरे शब्दों में, मेरी प्रकृति का सुंदर स्वरूप।
इंद्रधनुष से सतरंगे से भाव रूप में प्रश्न मेरे।
क्यों सतरंगी श्रृंगार, ओर लिखे गए शाद मेरे।।
मन में मेरे उठते ढेर सवालों का तूफान सा
जिंदगी के रंगमंच पर, मेरी कविता का स्वरूप
खिलते शब्दों के पुष्प, करती रहूं दुआ प्रभु से
कुछ ऐसे ही चलती रहे लेखनी मेरी।
इंद्रधनुष को देख भाव भर जाते प्रभु में मेरे।
कैसी लीला बिखेर देते हो सतरंगी प्रभु मेरे।।
श्रद्धा और संस्कृति, को ध्यान में रखते हुए
मर्यादा की राहों में, ही चले लेखनी मेरी बस
खिलते रहे रस्मों रिवाज के पुष्प मेरे शब्दों से
मधुर मन उदगार लिखूं मैं सदा सबके लिए।
इंद्रधनुष रूप को देख पृथ्वी भी प्रसन्न हुई।
मन में देख रूप सतरंगा प्रकृति भी खुश हुई।।
अवनि पर, अम्बर पर, और पेड़ पौधों पर
होते रहे प्रस्फुटित मेरे शब्द के रूप विभिन्न
मेरे जीवन के पुष्प मेरे शब्द यूं ही प्रफुल्लित से
होते रहे मेरी कविता रूप में सदैव ही।
