नई आस
नई आस
दिन के बाद है रात को आना
नया नहीं यह चलन पुराना
बीत चुके पर क्या पछताना
दिन आया है नया सुहाना
नई किरण है नई उमंग है
नया रंग है नई तरंग है
ओस बूंद से हुई सिंचाई
खिली कली बहार है आई
खिले कमल दल रात गुजर गई
अब तो पुरानी बात गुजर गई
केसरिया है नभ की आभा
तन मन में नवजीवन जागा
चलो उठो अब शरुआत हो
छोड़ पुरानी नई बात हो
मानो तो कई खुशी पास है
दिन नया है नई आस है