कोरोना काल
कोरोना काल
कोई वसुधैव कुटम्बकम की
आगे बढ़कर अलख जगाता है
कोई घृणा और अनुशासनहीनता के
मन में अलाव जलाता है
कोई दीप जला कर घर घर में
महाशक्ति को ध्याता है
कोई अज्ञान के अंधकार में
रहकर हर तर्क ठुकराता है
कोई ताल थाल और शंखनाद कर
सबका उत्साह बढ़ाता है
कोई भ्रामक बातों को फैला कर
अराजकता को उकसाता है
कोई निःस्वार्थ भाव से जनमानस की
सेवा करता जाता है
कोई दूसरों के घर घुसने की
हर पल जुगत लगता है
अपनी अपनी नीयत है
और अपना अपनी राहें
मिलता है फल एक दिन सबको
चाहें या न चाहें