घर में अब बसर करते हैं
घर में अब बसर करते हैं
बहुत छानी ख़ाक सड़क की घर में अब बसर करते हैं
शह्र बंद है चलो थोड़ा भीतर का सफ़र करते हैं
इस के कितने कोने अँधेरे हैं
जहाँ उदासियों के बसेरे हैं
मकड़ियों के कई जाले हैं
तो वीरानगी के डेरे हैं
उनको नई रोशनी मयस्सर करते हैं
इस मकां के कुछ यूँ नज़ारे हैं
कुछ गहराती दरारें हैं
मकीं कब के जा चुके हैं
गलियारों में तन्हाई के ठिकाने हैं
चंद खुशियाँ अब इसको नज़र करते हैं
वक़्ती परतें उधड़ रहीं हैं
गमगीनियाँ रिस रहीं हैं
किरीचें हर तरफ़ बिख़र रही हैं
हर कदम पे चुभ रहीं हैं
थोड़ा रंग रोगन आओ उस डगर करते हैं
भाग दौड़ ज़िन्दगी में है
अपनों के लिए फ़ुर्सत किसे है
ये आफ़त है न कि मजबूरी है
थोड़ा थमना भी जरूरी है
आज अपनों की इस घर की भी क़दर करते हैं
बहुत छानी...