ग़ुम हो जाऊं
ग़ुम हो जाऊं
लगता है ग़ुम हो जाऊं
तन्हाई में खो जाऊं
नहीं लुभाती दुनिया सारी
बेमतलब की लगती यारी
दुनियादारी लगे बीमारी
ख़ुद के ही संग हो जाऊं
सजधज दावत लगे चोचले
रस्म रिवायत लगे ढकोसले
रिश्ते भी होते हैं खोखले
जंगल में सुकून को पाऊं
किससे कहना जज्बातों को
किसने सुनना है बातों को
ख़ुदी काटना काली रातों को
ख़ुद हंस लूँ ख़ुद रो पाऊं
नाम दाम की चाह नहीं
काफ़िलों वाली राह नहीं
चाही है वाह वाह नहीं
अब रब के घर को जाऊं
लगता है ग़ुम हो जाऊं
तन्हाई में खो जाऊं।