मुझमे मैं कुछ इस तरह ..
मुझमे मैं कुछ इस तरह ..
मैं अब थोड़ी इस तरह खुद में उलझने लगी,
सुलझाने कोई फायदा नहीं
मैं अब खुद को पाती ऊंची ऊंची राह पर,
मैं खुद से अब बाते करने लगी
मंजिल के सफर में तो निकल पड़ी,
अब इस एहसास के साथ मंजिल तो मिलनी ही है
मैंने अपने आप को अब इस दायरे में बंद करके रखा है की,
अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लोगों की बातों का
मैं लडूँगी सच्चाई के लिए और जीत के दिखाऊंगी,
मैं एक लड़की हूँ तो क्या आसमान छू कर दिखाऊंगी
मैं जलूँगी दीपक की तरह और हर एक
शख्स को सहारा दूंगी जिसको मेरी जरूरत हो
हे रब मैं तेरी हमेशा शुक्रगुज़ार रहूँगी क्योंकि
तूने मुझे देने वालों में बनाया ना की लेने वालों में
अब तो मैं नदियों की आवाज सुनने लगी हूँ
उस मिठास की पानी में घुलने लगी हूँ
झरनों का गीत सुनकर कुछ इस तरह मैं खुद को
सुकून में पाती हूँ मानो सारी शांति उस गीत में है
मुझे अब जरूरत नहीं है लोगों के सहारे की
मेरी डायरी ही काफी है सुनने लिए
बस वही है जो मेरी सारी बाते समझ जाती है
बिना एक सवाल के
मैं खुद डायरी बन गयी हूँ अपनी कहानी की
और लिख रही हूँ अपनी कहानी ...............