रंग न उतरे प्रीत का (दोहे)
रंग न उतरे प्रीत का (दोहे)
कान्हा तेरी प्रीत ही है जीवन आधार
रंग भरो बस प्रेम का क्षणभंगुर संसार ।।
कमलनयन के प्रेम में राधिका है बेचैन
मीरा बनकर घूमती,चाहे हर पल प्यार।।
बाट जोहते नैन हैं हाल हुआ बेहाल
दर्शन दे दो सांवरे ,लीला अपरम्पार।।
स्वार्थ भरी जीवन डगर मोह लोभ की धूप
मन सुमिरन औ' कर्म से श्याम मिले साकार।।
उदित सूर्य में "पूर्णिमा" मुख पर है मुस्कान
रंग न उतरे प्रीत का, जीवन नैया पार।।

