परछाईं
परछाईं
इल्तज़ा है, ऐ परछाईं, तुमसे
न करो हरदम हमारा पीछा
चाहते हैं कभी तन्हाई हम भी
कुछ वक्त रहो दूर हमसे
परछाईं …
जनाबे आला
न बेज़ार हों फिजूल हमसे
हसरत तो हमारी भी है
कभी आपसे दूर रहने की
कसम खाई है हमने
ताउम्र आपका साथ देने की
गुम हो जाते हैं अक्सर हम
स्याह अंधेरों में
क्या ये लम्हे नहीं है काफी
मानाने में जश्ने ख्वाहिश ?