मुक़द्दर
मुक़द्दर
नहीं है शिकवा मुक़द्दर की बेअदबी से
वाकिफ़ हैं उसके बे-मुरव्वत रवैये से
कभी भर देता है ज़हन खुशियों से
कभी ढकेल देता है पुर-सुकून जिंदगी गर्दिशों में
बदल लेता है अपना रुख बिना किसी इत्तला के
नहीं बदल सके उसकी हरकतें अपनी ख्वाहिश से
नहीं कर सके दूर उसे अपनी ज़हनियत से
उम्मीदों के चिराग जलाये रखता है
तसल्ली का ज़ज्बा बनाए रखता है।
