कल्पना
कल्पना
काश! हमारी ये धरती स्वर्ग होती
सभी अपने होते न कोई ग़ैर होता
न दुश्मन होते न किसी से बैर होता
न रंजिश होती सबसे प्यार होता
न कोई तन्हा होता सभी साथ होते
न मायूस होते सभी ख़ुशहाल होते
न क्लेश होता न मनमुटाव होता
शिकवे न होते अमन चेन होता
न गरीब होते न अमीर होते
मजबूरी में कोई भूखा न सोता
किसी नियामत की कमी न होती
हैसियत में बड़े और छोटे न होते
सबको एक दूसरों का लिहाज़ होता
मज़हब के नाम उन्माद न होते
ज़मीं का हर बंदा इंसान होता
अगर ये कल्पना साकार होती
हमारी ये धरती स्वर्ग होती।
