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Vijay Kislay

Inspirational

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Vijay Kislay

Inspirational

खुद की खातिर जीते जाना, ठीक नहीं इस जीवन में

खुद की खातिर जीते जाना, ठीक नहीं इस जीवन में

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खुद की ख़ातिर जीते जाना,

ठीक नहीं इस जीवन में।

क्या तुमने ख़ुशियाँ पहुँचाईं,

दुखियों के घर-आंगन में।

क्या तुमने आशीषें पाईं,

स्वजनों के अभिनंदन में।।

मीठी वाणी सदा बोलिये,

रखा न कुछ भव बंधन में।

खुद की ख़ातिर जीते जाना,

ठीक नहीं इस जीवन में।।


क्या तुमने पूछीं श्रमिकों से,

उनकी दर्दीली बातें।

क्या तुमने काटी इनके संग,

जाड़े की बर्फीली रातें।।

उन्नति का उत्साह जगायें,

हम उनके पिछड़ेपन में।

खुद की खातिर जीते जाना,

ठीक नहीं इस जीवन में।।


क्या तुमने स्थान बनाया,

कभी किसी के दामन में।

क्या तुमने विश्वास जगाया,

दीन, दुखी, निर्बल तन में।।

परसेवा के सुमन खिलाओ,

जग रूपी इस उपवन में।

खुद की ख़ातिर जीते जाना,

ठीक नहीं इस जीवन में।।


क्या तुमने सीमा प्रहरी के,

दृढ़ निश्चय को जाना है।

क्या तुमने इनकी फौलादी,

ताकत को पहचाना है।।

इनके यश को हम फैलायें,

सारे जल, थल, नील गगन में।

खुद की ख़ातिर जीते जाना,

ठीक नहीं इस जीवन में।।


क्या तुमने आँसू पोंछे हैं,

कभी वक्त के मारों के।

क्या तुमने दुख सुख बाँटे हैं,

बेबस या लाचारों के।।

मानवता के दीप जलाओ,

आज सभी मानव मन में।

खुद की ख़ातिर जीते जाना,

ठीक नहीं इस जीवन में।।


क्या तुम ऊँचा उठ पाये हो,

जाति-पाँति के बंधन से।

क्या तुम समझ सके धर्मों को,

ईश्वर, अल्ला वंदन से।।

धर्म-द्वेष के छोड़ दायरे,

सदा जियो अपनेपन में।

खुद की ख़ातिर जीते जाना,

ठीक नहीं इस जीवन में।।


क्या तुम इस मानव जीवन में,

सत्य निष्ठ बन पाये हो।

क्या तुम देश प्रगति के पथ पर,

दो पग भी चल पाये हो।।

हम विकास करने भारत का,

क्रान्ति जगाये जन-मन में।

खुद की ख़ातिर जीते जाना,

ठीक नहीं इस जीवन में।।



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