बड़ा सुहाना बचपन था
बड़ा सुहाना बचपन था
ना द्वेष, ना चिंता ना ही तनाव था,
बस पूरा मस्तियों का आलम था,
करते थे वो ही जो करना मना था,
सच्ची वो बचपन बड़ा सुहाना था।
हाथ आई हर एक चीज़ खिलौना था,
चाहे ब्रश हो या सोने की चैन या कड़ा,
ऊँगलियों से घुमाना या दाँतो से चबाना,
बस उनका ये हश्र करना ही बचपन था।
अलमारी खुली देखते ही अंदर घुस जाना,
दो नोट छुपा, दादाजी को एक नोट दिखाना,
रंगबिरंगी टॉफ़ी खरीद, जीभ रंगीन करना,
देखो!देखो!ख़ून आ गया कहकर चिल्लाना।
मिट्टी में खेलना व मिट्टी से नहाकर घर आना,
रेत थोड़ी मुँह में, थोड़ी जेबों में ठूंसकर लाना,
माँ की डाँट सुन, भागकर दादी के पीछे छुपना
फिर दो चाँटा दे माँ का घिस घिस के नहलाना
हमारा वो बचपन आज कहीं नज़र नहीं आता
शहर से ख़त्म हुई मिट्टी, कहाँ वो धरोंदा बनता
प्रकृति की गोद में वो बड़ा सुहाना बचपन था,
उम्र से पहले बड़े होते बचपन से वो अलग था।
