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Meera Parihar

Abstract

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Meera Parihar

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प्रेम

प्रेम

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प्रेम हृदय वीणा का तार होता है।

गहरे आनंद में अनछुआ सोता है।।


प्रीत के बीजारोपण से स्पंदित हो।

अंतरमन तब कुछ-कुछ होता है।।


बजने लगती है वीणा झंकृत हो।

जब प्रियतम आनंद में खोता है।।


प्रेम मायने संगीत सप्तस्वर का।

बजता मध्य,तारसप्तक स्रोता है।।


प्रेम न अधीन है न स्वाधीन है।

आत्मुग्ध आनंद मन बोता है।।


मीरा, प्रेम की वीणा पर गाती ।

मन हो कृष्णमय प्रेम में रोता है।।


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