मकर संक्रांति
मकर संक्रांति
पतंग उड़ती
ऊँचे आसमान
देती एक
हसीन पैगाम
उड़ते जाना
ऊँचा ही ऊँचा
नहीं है कोई
सीमा आसमान
कभी ऊपर
कभी नीचे
भरती कुलांचे
खुले जहान
डोर तो सिर्फ
एक बंधन
जो ना होने दे
उसको बेलगाम
काली पीली
लाल नीली
मांगल दारा
चाँद तारा
क्या क्या नहीं
उसके नाम
तिल के लड्डू
गजक ओर फेनी
खाकर करते
दान पुण्य
उड़ाकर पतंग
मनाते मकर
संक्रांति का त्यौहार।