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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Abstract Inspirational

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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Abstract Inspirational

गुलशन के दोहे....

गुलशन के दोहे....

3 mins
366



1)

जीवन कल-कल धार है, बहना इसका भाव ।

पाहन रोके रासता, देता केवल घाव ।।

2)

निर्मल-निश्छल जीव में, मन को रखना सीख ।

जो जन तजता सीख को, मिलता केवल भीख ।।

3)

देती दलदल कर्ण को, दुर्योधन की मीत ।

मौत एक ही सत्य है, कौन सका है जीत ।।

4)

रोना-हॅंसना साथ में, चाहे निकले आह ।

दीप जले प्रभु नाम का, दिखे वही सत राह।।

5)

डरना गरजन से नहीं, बादल गरजे घोर ।

बारिश धुलते बाद ही, मिलता सुंदर भोर ।।

6)

कड़कड़ घन का नादना, देता डर है शोर ।

मोहक एकल नृत्य में, नाचे वन में मोर ।।

7)

प्रेमिल सामिल मेल में, रखना दुख को दूर ।

सुख को मन में जो धरे, हर्षित हो भरपूर ।।

8)

रिश्ते नित-नित डस रहे, करते हैं फुफकार ।

स्वार्थों के इस हाट में, बिकते हैं चीत्कार ।।

9)

रघुवर जन्मे हैं जहॉं, पावन होत शरीर ।

माया बंधन तुम तजो, देता केवल पीर ।।

10)

ईर्ष्या दहती गात को, होती है यह रोग ।

मीठे में कड़वा मिला, कैसे भोगे भोग ।।

11)

जीवन के इस युद्ध में ,रखना कर में जान ।

धर्म-कर्म के ज्ञान से, मिलता कंचन खान ।।

12)

महके जीवन प्रेम से, प्रेम जीव का सार ।

प्रेम पूज्य परिणाम है, प्रेम हर्ष आधार ।।

13)

खाते पीते गत हुआ, वजनी हो हर मास ।

अर्थी कॉंधा मॉंगती, तरती हरदम लाश ।।

14)

खेल ताश का है यही, पत्ते सारे खास।

इक्का बेगम सब मरे, विधि का अनुपम पाश ।।

15)

मिल जुल कर सब गाइए, जन मन का गुणगान ।

अलख जगे सद्भाव का, चलिए सीना तान ।।

16)

प्रेम बिछौना अब बने, मखमल सी हो सेज । 

अमन चमन के रत्न हैं, मोती सभी सहेज ।।

17)

पिय की वाणी बोलिए, प्रियतम रसना घोल ।

आना सबको है वहीं, सकल विश्व है गोल ।।

18)

काल सभी को मारता, क्या रांझा क्या हीर।

ऑंख बंद हो मरण में, नैनन लाते नीर ।।

19)

हम सब तो हम राह हैं, पैसे का क्या मोल ।

एक गर्भ से सब जने, उसी तुला में तोल ।।

20)

जीवन का अंजाम है, होता सबका अंत ।

बनना सबको राख है, साधु और क्या संत ।।


21)

प्रेम प्रीत अरु सत्य का, जैसा अनुपम साथ ।

सुमधुर वाणी के बिना, ज्ञानी होत अनाथ।।

22)

बूॅंद-बूॅंद में पुण्य हो ,पावन गंगा धार ।

शंका सारे तोड़िए, भगवन तारण हार ।।

23)

दौड़ धूप में अब यहाॅं, तनिक नहीं आराम ।

उलझे हैं सब मोह में, सूना नंदीग्राम ।।

24)

युगों-युगों से पाप ही,करता रहा विनाश ।

दर्द देत है सत्य को,पाप बड़ा बदमाश ।।

25)

गगन क्षितिज में जा मिला, स्वयं धरा से आज ।

दिव्य प्रेम से जो मिलें, करे न प्रश्न समाज ।।

26)

भूख प्यास से मर रहे, खाद्य अन्न बिन खेत ।

गली-गली में गज गए, बिखरे सभी निकेत ।।

27)

देव योग संयोग से, मिला मनुज यह जन्म ।

पुण्य लेख है मनुजता, मंगल हो आजन्म ।।

28)

चहकत नित चहुॅं दिग दिखे, दिखे मार्ग में फूल ।

लुप्त लाज से योषिता, बनी रही थी धूल ।।

29)

लक्ष्य बनाकर ज्ञान को, पढ़िए मंगल जान ।

तजो क्रोध को धैर्य से, अंतिम रण है मान ।।

30)

बाल्यकाल का बल पिता, खेल वस्तु उपहार ।

पिता परवरिश दे सदा, पिता मात आधार ।।


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