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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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कैकेयी और राम वनवास

कैकेयी और राम वनवास

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कैकेयी के दो वरदानों में से एक को जनमानस 

राम के चौदह वर्षों के वनवास का कारण मानता है

पर उनकी विवशता को भला कौन जानना चाहता है?

हमें तो उनमें खल चरित्र नजर आता है

केवल पुत्र मोह का लोभ दिखता है।

मगर ऐसा कौन है जो नहीं जानता

कि राम कैकेयी को भरत से ज्यादा दुलारे थे

उनकी आँखों के तारे थे

उन्हें अपने प्राणों से भी ज्यादा प्यारे थे।

उन्होंने राम के साथ ऐसा क्यों किया था

इसके पीछे का राज बड़ा गहरा था

क्योंकि वो एक पत्नी, एक मां होने के साथ

अयोध्या की महरानी ही नहीं कुशल योद्धा भी थीं,

सब कुछ सहकर भी अयोध्या का गौरव

उनकी सबसे बड़ी जरूरत और चिंता थी,

जिसकी खातिर वे कुछ भी सह सकती थीं

राम वनवास के पूरे घटनाक्रम से

साफ साफ यही झलक रहा है।

एक बार राजा दशरथ कैकेयी के साथ 

भम्रण करते हुए वन की ओर निकल गए,

जहां बाली से उनका सामना हो गया

जो उनसे बात बात में किसी कारण नाराज़ हो गया।

बाली ने युद्ध की चुनौती दे दिया

युद्ध में बाली राजा दशरथ पर भारी पड़

युद्ध में उन्हें परास्त कर दिया।

जिसके बाद बाली ने राजा दशरथ के सामने

विचित्र शर्त रख दिया

या तो वो पत्नी कैकेयी को वहां छोड़ जायें

या अपना राजमुकुट दे जायें।

तब राजा दशरथ ने अपना राजमुकुट छोड़

कैकेयी के साथ अयोध्या लौट आए। 

ये बात कैकेयी को पीड़ा दे गयीं

इस अपमान को वे दिल से लगा बैठी

इसके पीछे खुद को कारण मानने लगी।

राजमुकुट की वापसी की खातिर चिंता में रहने लगी

और मुकुट वापसी की राह खोजने लगीं

संयोगवश कैकेयी के पिता बीमार रहने लगे

और भरत से मिलने की इच्छा व्यक्त किए

कैकेयी के भाई ने यह संदेश

राजा दशरथ तक भिजवाया

भरत को कैकेय देश आने काअनुरोध पहुंचाया।

भरत शत्रुघ्न संग नाना से मिलने चले गए,

इसी बीच राजा दशरथ ने 

अपने उत्तराधिकार सौंपने का निर्णय ले लिया।

प्रजा इस खबर से खुशी मना रही थी

पर कैकेयी की दासी मंथरा को

राम का राज्याभिषेक बड़ी ईर्ष्या हो रही थी।

उसने कैकेयी को राम ही नहीं

कौशल्या के खिलाफ भी भड़काने लगी।

राजा दशरथ के कैकेयी को दिए

दो वचनों की याद दिला आग लगाने लगी,

यही उचित समय है दो वचनों को मांगने के लिए

बार बार यह बात समझाने लगी।

एक में भरत को राज सिंहासन

और दूजे में राम को चौदह वर्षों के वनवास का

मांगने पर जोर दे आग भड़काने लगी।

कैकेयी को यह ठीक तो नहीं लग रहा था,

पर बाली के पास राजा दशरथ का राजमुकुट भी

उनके जेहन में कौंध रहा था,

पति के अपमान का बदला लेने का 

यही सबसे अच्छा अवसर है,

उन्हें राम की सामर्थ्य का

पहले से ही बेहतर पता था

इस काम के लिए राम से बेहतर

कोई और दिख भी नहीं रहा था

तब कैकेयी ने राम के लिए यही ठीक समझा

और राम के लिए चौदह वर्षों का वनवास

एक वचन के बदले मांग लिया

इसकी पीछे की मंशा कोई समझ न सका

राजा दशरथ को भी अपनी मंशा की

भनक तक भी न लगने दिया

इसीलिए भरत के लिए राज सिंहासन

दूसरे वचन के रूप में साथ ही मांग लिया।

आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है

बाली के पास राजमुकुट की बात

सिर्फ राजा दशरथ और कैकेयी को ही पता था,

किसी तीसरे को इसकी भनक तक न लगा था।

राम वनवास की यही कहानी थी

जिसे कोई जान भी नहीं पाया

और सारा दोष कैकेयी के मत्थे मढ़ाया

भरत भी मां को ही कोश रहे थे।

कैकेयी सब कुछ सह रही थी

पति मृत्यु का लांछन भी झेल गई थी।

महारानी होकर भी आमजन की आंखों में चुभ रही थी

ऊपर से कठोर बनकर तिल तिल कर जी रही थी

अपने होंठ पर मौन के ताले लगाए थी

राजमुकुट और राम की प्रतीक्षा में

अपने आंसुओं को पी पीकर

राम की प्रतीक्षा में एक एक दिन गिन रही थी 


मगर कैकेयी निश्चिंत भी थी

सब कुछ सहकर भी बहुत खुश थी, 

क्योंकि राम की नजरों में आज भी 

उसके लिए इज्जत कभी कम जो नहीं हुई थी। 



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