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Ritesh Maurya

Abstract

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Ritesh Maurya

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सैनिक

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उनके भी थे,कुछ अरमान,

जिन्होंने गंवा दी,सरहद पर अपनी जान,

वह भी थे,एक माँ की संतान,

जिन्होंने गंवा दी सरहद पर अपनी जान,

स्वार्थ-लोभ- यश,

जिनको सका ना जीत,

जो अपने मन के मतवाले थे,


मातृभूमि के मीत,

मातृभूमि के प्रति,

जगा जिनमे ऐसा अनुराग,

यौवन मे ही सबकुछ न्यौछावर कर,

जिन्होंने मातृभूमि की सेवा का लिया वैराग,

दुर्गम-बर्फानी-घाटी में शत-सहस्त्र-फुट-शिखर पर,

शीत घाम सर्दी गर्मी का,

न करते परवाह,

और हँसते-हँसते गंवा देते है,


अपनी जान,

जिनके रग रग में,

बसता है मातृभूमि का गुणगान,

दूसरो के प्राणों के रक्षा की खातिर,

लगा देते अपने प्राणो की बाज़ी,

वह न ही दिल के कच्चे होते हैं न ही आत्मघाती,

न कभी डरते हैं,


बनने से मौत के बाराती,

जो हँसते हँसते मर जाते हैं,

उनके भी थे कुछ अरमान,

वह भी थे एक नन्ही सी जान,

जो दुश्मन से लड़ते हैं,

मातृभूमि की रक्षा करते हैं,

और कभी ना अपने जान की परवाह करते हैं,


उनके हौसलों में थी उड़ान,

एक दिन तिरंगा बन गया जिनकी पहचान,

वह भी थे, एक माँ की संतान,

उनके भी थे कुछ अरमान।


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