*सांध्य बंधन*
*सांध्य बंधन*
कितना अद्भुत है विह्वल आज
कालांतरित यह प्रीत मिलन।
अल्हड़ था वह झूठा अहं पगा
इठलाता मदमाता यौवन॥
है प्रीत पवित्र वही...
आह्लादित सा मन।
अक्षुण्य आत्मा शाश्वत निरन्तर,
है परिवर्तित यह तन।
पल-पल विकसित पल-पल टूट रही
काल-कल्वित यह काया।
उत्कंठ भरा प्रेमातुर विकल
प्रेमी कंचन कौतुक छाया।
दुबकी हैं अनुभूतियाँ
कोमल कालांतरित।
झुर्रियों संग हास-विलास
रास विस्तारित॥
ढलकते तंत
ु चांदनी चहकती
बिखरी श्वेत अलकें।
छन गया छार सभी कलुष
मन का..वासनामय छनके।
मिलन हमारा गूढ़ एकांत
उल्लास यह क्षितिज पास।
सुन ले करुण पुकार टूटे
न सांध्य बंधन ये काश !!
पवित्र आंकलन प्रेमी बंधन
इक दूजे का आत्मसंबल।
मत झुलसाना मृत्यु शाश्वती
जीवन एकाकी को दंश गरल।
नहीं बेवफ़ाई का भय..
तू मेरा..मैं तेरी
चलें बस एक ही संग।
हे मेरे ईश्वर हे मेरे ईश्वर
सुन ले बस..एक यही अरज उमंग।