खिलखिलाती है ज़िंदगी भी
खिलखिलाती है ज़िंदगी भी
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खिलखिलाती है ज़िंदगी भी,
कभी बंद ऑखों से सुकून के..
पलों को याद करके तो देखो,
दिल के तमाम उलझनों को..
भुलाकर तो देखो,
कभी बचपन में गुजारी हुई..
कुछ शामों में जाकर तो देखो,
खिलखिलाती है ज़िंदगी भी,
कभी होठों पर बेवज़ह ही..
हंसी लाकर तो देखो,
इन फूलों की तरह तुम...
मुस्कुराकर तो देखो।