जिम्मेदारी
जिम्मेदारी
मैंने देखा है,
कि कैसे,
एक जिम्मेदारी,
बदल देती है,
मनुष्य के आलस्य को,
ताकत और पहचान के रूप में।
लापरवाही,
परेशानी,
आराम,
सब गुम हो जाते हैं,
जिम्मेदारी दबे पांँव आकर,
सब चुरा ले जाती है।
वो हरफनमौला तन,
चंचलता से भरा मन,
शिथिल सा पड़ जाता है,
जिम्मेदारी,
हल्के दिमाग को,
भारी बना जाती है।
मैंने देखा है,
कि कैसे जिम्मेदारी,
एक साफ माथे पर,
चिंताओं की लकीरें खींच जाती है।