एक दिन
एक दिन
1 min
143
एक दिन इस सृष्टि का नाश हो जाएगा।
दुनिया में उथल-पुथल मचेगी।
हाहाकार मच जाएगा।
वस्तुएँ नहीं बचेंगी, प्राण नहीं बचेगा,
पृथ्वी पृथ्वी नहीं रह जाएगी।
सबका विनाश हो जाएगा।
लेकिन इन सबके बावजूद बच जाएगा "प्रेम"।
और फिर सदियों बाद इसी प्रेम के बीज से
एक नई सृष्टि का निर्माण होगा।
यह मानवहीन धरा फिर से मनुष्य जाति से भरी होगी
और इस बार प्रेम प्रधान होगा
मन में, तन में, जीवन में और हृदय में।