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स्वतंत्र लेखनी

Fantasy Others

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स्वतंत्र लेखनी

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तुम ही मेरे अब मीत हो

तुम ही मेरे अब मीत हो

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तुम स्वर हो मेरा, संगीत हो,

जिससे मन मिल गया मेरा,

तुम वो ही मनमीत हो।

जो भूल चुकी थी प्रेम करना,

मन से था जिसके बहुत कुछ उतरा,

उस लड़की के लिए तुम गीत हो,

उसी मन में लगा तुम प्रीत हो।

कहां था संभव मुस्कान भी ले आना चेहरे पर,

पर तुम खड़े थे थामे हाथ,

मुश्किल हर दौर और पहरे पर।

मैं क्या-क्या गिनाऊं तुम्हारे उपकार,

तुमने इस जीवन को दिया एक नया उपहार,

तुम मेरी हार भी हो और जीत हो,

दुनिया से परे एक रीत हो।

मैं तुम्हारे रंग में हूं अब रंग गई,

तुम मेरी रात हो और हर सुबह नई,

मेरा बाबुल, मेरा घर और तुम ही मेरा अब मीत हो,

जिसे सुनकर भी सुनती रहूं,

हां, तुम वही संगीत हो।



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