माँ ! तेरे इन्तका़ल पर
माँ ! तेरे इन्तका़ल पर
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माँ ! तेरे जाने के बाद
सब ने ही कहा इन्ना लिल्लाह्
व इन्ना इलैहे राजेऊन।
सब ने ये कहा
अल्लाह् दरजात् बुलन्द करे।
सब कहते रहे मैं सुनती रही
लेकिन ये किसी ने पूछा नहीं
अब कितनी अकेली हो गईं तुम
अब कितनी तन्हा हो शहनाज़ !
जब रिश्ता तुम्हारा टूट गया
तुम्हें घर से, रिश्ते नातों से
जो जोड़ती थी वह टूट गई
दुनिया से जोड़ने वाली कड़ी
देखो तो कैसे टूट गई।
हां अब तुम बिल्कुल तन्हा हो
पहचान तुम्हारी खत्म हुई
एक दौर के जो थे निशान मिटे।
इक वो ही थी जो जानती थी
के बेटियां कैसे रोती हैं
तन्हाई के लम्हों में छुप कर
वह कैसे तकिये भिगोती हैं।
ऐ माँ ! तेरे जाने के बाद
सबने ही कहा है इन्ना लिल्लाह्
किसी एक ने मुड़कर पूछा नहीं
अब कितनी अकेली हो शहनाज !
मैं जानती हूंँ मैं वाक़िफ हूँ
हर घर की यही कहानी है
माँ के जाते ही बेटी का
रिश्ता तो बहता पानी है।