गीत - नया समाज
गीत - नया समाज


है नये समाज की कल्पना निगाह में
डूबे ना जहां कोई आँसुओं में आह में
स्त्रियों को सब यहां दीन हीन मानते
ज़ुल्म ढाते करते हैं बन्द सारे रास्ते
उम्र सारी बीतती है मर्द की पनाह में
है नये समाज की कल्पना निगाह में
डूबे ना जहां कोई आँसुओं में आह में
मान सम्मान और असलियत को भूलकर
ये रहें समर्पिता अहमियत को भूलकर
सहती हैं कठोरता अपनेपन की चाह में
है नये समाज की कल्पना निगाह में
डूबे ना जहां कोई आँसुओं में आह में
भेदभाव दूर हो, अत्याचार दूर हो
नारियों के प्रति सारे कुविचार दूर हो
सारे मानव एक हैं न्याय की निगाह में
है नये समाज की कल्पना निगाह में
डूबे ना जहां कोई आँसुओं में आह में
रुढ़ियों, कुरीतियों आडम्बरों को त्याग कर
मिथ्याचार, अहंकार, क्रूरता को त्याग कर
मिल के हम बढ़े चलें उन्नति की राह में
है नये समाज की कल्पना निगाह में
डूबे ना जहां कोई आँसुओं में आह में