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Shahnaz Rahmat

Others

5.0  

Shahnaz Rahmat

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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कितना ज़हरीला कितना बड़ा जानवर

आदमी बन गया आज क्या जानवर।

ये हुजूमी तशद्दुद ये दंगे फसाद

भीड़ में फिर रहा है खुला जानवर।

तेरी ख़सलत न ऐसी थी इंसान कभी

किसलिए बन गया तू बता जानवर।

लाख वहशी है ये फिर भी मासूम है

अपनी फितरत से कब है फिरा जानवर।

इसके क़ानून जंगल में उम्दा रहें

बेसबब कब शिकारी बना जानवर।

अपने गुस्से पे तुझको भी काबू नहीं

देख बन जाएगा सरफिरा जानवर।

मेरे महबूब दिल यूँ जलाया न कर

होके मजबूर तुझको कहा जानवर।

एक हिरनी सी चंचल थी मैं भी कभी

जाने कब डस गया अज़दहा, जानवर

एक ही घाट पर शेर और भेड़ हों

क़ायदा ऐसा कोई सिखा जानवर।

दुश्मनी है हसद है न नफरत की धुन

कितना सच्चा है कितना खरा जानवर।

देख जंगल में मंगल, मगन हैं सभी

ऊंट हाथी हिरन नेवला जानवर।

जाके जंगल में शहनाज बस जाऊँगी

दोस्त बन जाएगा अब मेरा जानवर।



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