जिन्दगी जिन्दगी
जिस्म अब है टुकड़ों में बेगुनाह् ग़रीबों के रोटियां सलामत हैं। जिस्म अब है टुकड़ों में बेगुनाह् ग़रीबों के रोटियां सलामत हैं।
नज़र भी आता नहीं कौन है ये ना हिन्दू है ना मुसलमान है ये नज़र भी आता नहीं कौन है ये ना हिन्दू है ना मुसलमान है ये
घटता वो पल पल फिर भी कीमत उसकी बढ़ती हरदम। घटता वो पल पल फिर भी कीमत उसकी बढ़ती हरदम।
कोई नुमाइश की शै नहीं है औरत। कोई नुमाइश की शै नहीं है औरत।
क्यूंकि सवाली बनना उसके ही नसीब में होता है। क्यूंकि सवाली बनना उसके ही नसीब में होता है।