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Mritunjay Patel

Abstract Inspirational

4  

Mritunjay Patel

Abstract Inspirational

अलग -थलग लोग

अलग -थलग लोग

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धर्म – कर्म सब छोड़ कर

कुद पड़े सब राजनीतिक ‘हवन कुण्ड’ में l

बेज़ुबान बूत पड़े है ! मंदिरों, गिरजाघर, मस्जिदों में l

 क़त्ल हो रहे इंसान l


रुक क्यों नहीं रहा यह खेल तब / अब भी ?

हाड़ – मांस जैसा सब यह इंसान l

पंत में बटकर अलग – थलग पड़ा इंसान l

सभी पंत, इंसान की ज़ड़ ढूंढ़ते.. l

क्या मिला उसके फलसरूप …?


आपस में लड़ते , बटते रहें,

जिस सकूँ की तलाश में निकल पड़े थे

सकूँ कहाँ गायब हो गया.. l


कुछ पल नमाज़ अदा कर, पूजा – पाठ कर

मन की शांत मिल जाती l

आज फिर सियासी तूफ़ान उठा

नफ़रतें फिर से दीवाल को भेद कर

ख़ून के प्यासे हो गए l


मंज़र यह देख कर वह भी विचलित होते होगें

जिस पर हमारा,  तुम्हारा  यकीन है l

अब रख भी दो अपनी तलवारें मियान में

बहुरुपिया बहुत बन लिए तुम l


निस्बत जिस ख़ुदा / देवता पर है,

उनसे ज़रा राबता ना तोड़ ! इंसान के रूह में देखों ज़रा,

हर दिल पत्थर नहीं मोम भी है l 

 अपने दोष पर पर्दा डाल कर सच पर भी गुर्राओगे ? 


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