नई संसद की दीवारें
नई संसद की दीवारें
नई संसद की दीवारें बोलेगी
आप की हठधर्मिता …
महल की भवता में देश के
सर्वोच्च नागरिक का अनादर ,
विपक्षी पार्टी को रखा ताक पर ,
चलाकर अपने राज दंड,
कई साल के अथक अनुसंधान से पाया
" सेंगोल " (राज दंड / ब्राह्म दंड ) ,
संग्रहालय में पड़ा था,
धरोहर दर्शन अभिलाषी।
अब स्थानांतरित हुआ,
यह राज दंड l
सुशोभित करने नई संसद ,
बहुल सत्ता में होगी जिसकी कुर्सी ,
क्या राज दंड का चलेगा डंडा !
कुछ ऐसा ही दृश्य उभरा दिल्ली के सड़क पर,
उसी क्षण भारत की ओलम्पिक विजेता 'बेटियों' को सहनी पड़ी पीड़ा ,
जो लड़ रही थी ,
अपनी अस्मिता की लड़ाई !
सभी मिडिया का मौन व्रत देख,
हुई जग हंसाई l
संसद के उद्घाटन में
सर्व धर्म का प्रतीकात्मक,
सम्मान योग्य था ,
लेकिन इस काल - खंड में ,
दलित होना रह गया कलंकित !
कैसे हवन कुंड से दूर बना कर रखा
अछूत को .. अछूत न कहे,
तो क्या कहें?
देश का सर्वोच्च लोक मंदिर की दीवारें ,
चीख कर बोलती रहेंगी कान बहरे होने तक…
मैं संसद की गरिमा हूं..
किसी की बनाई हवेली नहीं l
मुझ में बसता है,
सम्पूर्ण भारत वर्ष की आत्मा ।
मैं न्याय की मंदिर हूं,
मैं हर भारतीय की उम्मीद हूं ,
फिर क्या रही मजबूरी
"मैं" की भरने हुंकार ,
सत्ता पाना एक मात्र लक्ष्य नहीं।
न्याय दो..!
न्याय दो..!
तुम सबकी ,
हो आवाज़ l
किसान कहता न्याय दो..
गरीब - अमीर कहता न्याय दो..
हमारी दमित बेटियाँ कहती न्याय दो..
देश की युवा कहता न्याय दो..
तुम्ही तो उगता सूरज हो..
तुम्हें ,प्रतिनिधि बनाकर ,
सड़क से संसद तक पहुंचाया है,
उन्हें, उनके देश संवारने ,
उन्हें, उनके सपनों के पंख फैलाने,
उसकी उम्मीद का जलती बाती हो।
यह भारत जैसा कोई विश्व में देश नहीं ,
जिसमें रचता - बसता ,
सर्व धर्म की अंतर आत्मा है।
मैं, मैं ..
की चलन को त्याग कर ,
चलानी होगी सरल जीवन धारा,
कट्टरता से परे,
बहानी होगी विज्ञान की धारा l
संसद गढ़ती रहेगी सदा ,
आवाम की समाधान की धारा।
