बंदिश
बंदिश
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बंदिशों में रह कर, घेरा नहीं टूटता।
मन उदास_कुंठित, दुखों का पहरा।।
पात्र नाटकीयता ,रेशम सा बुनता जाल ।
खुद की षडयंत्र में उलझ कर घिरा अंधेरा।।
नई पौध को छूना था ,उन्मुक्त आसमान ।
संकीर्णता की दलदल में भविष्य खड़ा।।
प्रकृति के आनंद की अनुभूति से वंचित l
घर _आंगन की खुशहाली पर घेरा ll
बाकी बचा क्या जीवन में ???
जहां उदारता वहीं खिलखिलाता है ;जीवन ।
उन्मुक्त गगन तले ,मिलता हर रस की अनुभूति।।
बंदिशों में रह कर, घेरा नहीं टूटता।
हर तरफ उदास_कुंठित , दुखों का पहरा ।।