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Mritunjay Patel

Others

4  

Mritunjay Patel

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बंदिश

बंदिश

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बंदिशों में रह कर, घेरा नहीं टूटता।

मन उदास_कुंठित, दुखों का पहरा।।

 

पात्र नाटकीयता ,रेशम सा बुनता जाल ।

खुद की षडयंत्र में उलझ कर घिरा अंधेरा।।


नई पौध को छूना था ,उन्मुक्त आसमान ।

संकीर्णता की दलदल में भविष्य खड़ा।।


प्रकृति के आनंद की अनुभूति से वंचित l

घर _आंगन की खुशहाली पर घेरा ll


बाकी बचा क्या जीवन में ???


जहां उदारता वहीं खिलखिलाता है ;जीवन ।

उन्मुक्त गगन तले ,मिलता हर रस की अनुभूति।।


बंदिशों में रह कर, घेरा नहीं टूटता।

हर तरफ उदास_कुंठित , दुखों का पहरा ।।


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