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Mritunjay Patel

Romance

4  

Mritunjay Patel

Romance

सांवली सी इश्क

सांवली सी इश्क

2 mins
318



आईना में रूप निहारती बार - बार , 

 सांवली  सी वो लड़की , कुछ बुदबुदाती ,

 फिर खिलखिला कर मुस्कुराती , 

उभर आती गाल पर खूबसूरत डिम्पल ,

 तलाश रही थी अंदर संपूर्ण स्त्री  , 

जो पुरुषों के ख्यालों में 

रचता - बसता 'दूधिया चाँद' सी स्त्री l


आईना मे रूप निहारती बार - बार , 

सांवली सी वो लड़की , 

उनकी भी ख्यालों में थी ,

सूरज सा दमकता लड़का,

दिल में खलल होती थी ,

 खूद में चांद सी आकृति l 


वह पढ़ रही थी, 

 कविताएँ  सौंदर्य के 

स्त्री के शरीर का निरवस्त्र वर्णन 

जैसे स्त्री काम - वासना की वस्तु !

खोज लेती कई गुण खुद में

 मुस्कुराती तो बन जाती है

'डिंपल' उसके गाल पर

 एक 'लट' बिखेर, सज- संवर कर चलती 

यू बलखाती ..

मोहब्बत करती एक लड़के से

उसमें कुछ ऐसा जो  

उनकी ख्यालों से होती थी कुछ मेल l


भयभीत होकर कभी-कभी

अपनी सांवली सूरत पर  

प्रश्न उठती है 'मन' में 

क्या सांवली सी होती है ,इश्क भी .. !


खिल आती है चेहरे पर  फिकी मुस्कान !  

कभी नहीं देखा अखबारों में छपी  इस्तिहार-

'सांवली , सुंदर , पढ़िलिखी, संस्कारी लड़की चाहिए। 

तब सांवली लड़की की होती सीना - चाक !  


उनसे, मेरी है, बेपनाह मोहब्बत l

 उनको, मुझ से है , नहीं मालुम  ! 

 जब होगी वार्तालाप सौंदर्य पर 

 तब जीतेगी आंतरिक सुंदरता मेरी।

उनसे करुंगी सवाल यह  :- 

मोहब्बत' भी सांवली होती है ?


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