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Arunima Thakur

Abstract

4.7  

Arunima Thakur

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अमृत की बूँदे

अमृत की बूँदे

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कुछ पल चुराकर रक्खे है,

यादों की अलमारी में

खोलती हूँ, जीती हूँ, उन पलों को,

जब थक जाती हूँ ,

इस जीवन की आपाधापी में।


कुछ पल गुड़िया गुड्डों के,

कुछ ऊंची ऊंची पेंगों के,

नानी दादी की कहानी के,

कुछ माँ की मीठी डॉटों के,


कुछ पल वह पेड़ पर चढ़कर,

कच्चे-पक्के फल खाने के,

कुछ पल सखियों संग हसने के,

कुछ लोगों की फरियादों के ,


कुछ पल वह छुप-छुप कर तकने के,

कुछ छुपकर ताके जाने के ,

कॉपी में बंद गुलाबों के ,

उनसे टकरा जाने के,

वह बिन बोले इजहारों के

आखों के मौन इशारे के ,


कुछ पल वह भी है समेट लिए

जिनको हम जी भी नहीं पाए,

वह कहते कहते रुक जाने के,


वह रीति रीति आखों के,

वो लरजते लबो के थरथराने के,

वो टूटे झूठे वादें के

वह प्यार के अधूरे एहसांसों के,


कुछ पल विदाई की बेला के ,

कुछ माँ पापा के आँसू के ,

कुछ सखियों संग ठिठोली के,

वह प्रिय मिलन के सपनों के,


कुछ प्रथम मिलन की यादों के,

कुछ मातृत्व के एहसासों के,

सबको चुन चुन कर रक्खा हैं,

मैंने यादों की अलमारी में,


जब थक जाती हूं जीवन से,

फिर उनको मैं जी लेती हूँ,


ये पल नहीं अमृत बूँदें हैं

मैं वक्त बेवक्त पी लेती हूँ।


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