सावन
सावन
सावन में पुरवइया चलती
बरखा भी अल्हड़ बन जाती
बगिया भी जवान हो जाती
पौधे भी लेते अंगड़ाई
भर जाते हरियाली से
फुलवारी भी खिलखिला
कर हंसती,
खिल जाती कलियां सारी,
फूल बन भौरो को रिझांति
तितलियों की हो जाती मौज
हर फूल को चूमने का मौका
वह कभी ना छोड़ पाती
रस चूसते भौरे भी उनके
अगला जीवन देने को
मधुमक्खियां भी आ जाती
फूलों का रस लेने
बना के छत्ता शहद का
देती स्वाद बहुतेरे,
देख यह सब बरसे
बरखा भी जम के।
