पिंजरे का एक पंछी
पिंजरे का एक पंछी
पिंजरे का एक पंछी
ये सोने , चांदी के पिंजड़े
ऐसे नहीं है कोई बहाने
रख लो तुम मुठ्ठी में भर
अपने सारे खिलौने
पर मुझको कर दो आजाद।
मैं खुले सोच का हुँ परिंदा
आज इस डाली ,तो कल उस डाली
खुले सोच से उड़ने वाला
मधुर जीवन जीने वाला।
पर मानव तुमको रास न आया मेरा यूँ इतराना
जो पिंजरे में मुझको है डाला
कुसूर क्या था मेरा
जो मानव तुमने कैद दे डाली।
मुझको नहीं चाहिए तेरा बंगला
नहीं चाहिए तेरा पिजा- बर्गर
मैंने चाहा है उड़ना
मैंने चाहा है आसमान में उड़ना।
अब तो लगता है
यूँ कैसे मर जाऊंगा
एक दिन मैं उड़ जाऊंगा
है इसका विश्वास मुझको।
मुट्ठी भर तो सब का जीवन है
पर मानव तो सब भूला है
है सब याद मुझको
एक दिन मैं उड़ जाऊंगा।
पिंजड़ा तू रख लेना अपने पास
आसमान का पंछी हूँ
फुरसत से एक दिन उड़ जाऊंगा।
