बचपन का सावन
बचपन का सावन
बचपन का सावन
मधुर था बचपन
सुंदर था सावन
हाथ के दौने में पानी भरते थे
पैरों से छप छप करते थे
सर पर थाली रखकर
बूंदों से ध्वनि बनाते थे
हथेली में चीनी, नमक
बूंदों से पिघलाते थे
परनाले के नीचे
झरने का सुख पाते थे
कागज की नाव बहाते थे
गांव हो जाता जलमग्न
रास्ते छुप जाते थे
घरों की छतों पर मोर
नाचा करते थे
गौरैया पानी में मस्ती करती
चींटी अपने घर में छुप रहती
इंद्र धनुष के रंग देखने ललचाते थे
लाल मखमली कीड़े को हथेली में रख
सहलाते थे
कितनी ही यादें ले आता है हर सावन
याद आ जाता है बचपन वाला सावन।