अंकुर
अंकुर
फूल को खिलते देखना
सब को अच्छा लगता है
लेकिन उसके लिए बीज को
जमीन में दफन होना पड़ता है।
छोटे छोटे अंकुर भी
तब ही दिखते हैं जब
कोई अपना सर्वस्व झोंक
गुमनामी में फना होते हैं।
कुछ भी ऐसे ही एकदम
से नहीं होता,पहले बीज,
फिर खाद,पानी,धूप,तब
कहीं जाकर अंकुर फूटता है।
जो तुम चाहते हो कि
दिलों में प्यार के अंकुर फूटें,
सब लोग घृणा,आपसी वैमनस्य
से दूर दूर होकर न हटें।
तो दिलों की बंजर भूमि में
कुछ भाईचारे की नमी कर लो।
बड़प्पन की खाद से उसे सींच लो
ताकि दोस्ती का अंकुर खिल सके।
ये अंकुर ही पल्लवित होकर
एक दिन वटवृक्ष बनेगा,
जिसकी छांव में, हमारा देश
सुख समृद्धि से भरपूर होगा।