शृंगार रस
शृंगार रस
यूँ अपनी रूह को तबाह मत करो, कसकर पकड़ो मेरी चाहत को और
हल्का सा दबाव दे दो हमारे रिश्ते की गिरह को
ये वक्र सा वादा मुझे अखरता है..
'मैं हाँ मैं' तुम्हारी दुनिया रचना चाहती हूँ जिसमें तुम्हारी आँखों में रोशनाई भरते
उस चरम तक ले जाना चाहती हूँ,
जो तुम्हें भीतर तक खुश रखें..
तुम्हारे गालों पर अपने लबों से गिरते शहद की बारिश करने जा रही हूँ
आँखें मूँदे महसूस करो,
एक सुरीले स्पंदन की लड़ी उठेगी अपने दिल के तारों में..
तुम भावुक हो अपनी भावनाओं को मेरे अब्र से तन की सुगंधित त्वचा की परतों पर रख दो
इसे लावारिस नहीं छोडूँगी,
नखशिख मेरे हर अंगों में मलते ख़ुमार जगाऊँगी..
बह जाओ मेरे उन्माद की रंगत संग गुनगुनाते एक महफ़िल बसती है मेरे भीतर खुशियों की,
क्या तुम महसूस करना चाहोगे ज़िंदगी की हर रानाईयों को जिसे मैंने पी रखी है..
जिस्म की भूख को कैद कर दो इनकार की संदूक में,
मन के भावों को उत्तेजित करो सुगंधित मेरी साँसों में अपनी साँसों का संगम रचकर,
नखशिख मेरे अंदर बस जाओ..
मैं उस अर्श की चौखट तक तुम्हें ले जाऊँ
जहाँ कुबूल होती है नेमतें ईश्वर का स्मरण करते खुद को मेरी आगोश में सौंप दो,
जितना तुमने मुझे जाना है उससे कई गुना अनंत हूँ मैं..
