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आचार्य आशीष पाण्डेय

Abstract

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आचार्य आशीष पाण्डेय

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नूतन वर्ष

नूतन वर्ष

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नूतन वस्त्र धरी धरती जब

नूतन वर्ष सजा धरती पर

सुमन खिले स्वागत करने को

धरती रंग रंगाई स्व कर।।


दिनकर बाल्य रुप को त्यजता

शशि ठिठुरन से मुक्त हो रहा

सुन्दर दिखता अम्बर भी है

जो ठंडी का कोप सहा।।


प्रेम दीप जलने को आतुर

ख़त पर ख़त मिलने को व्याकुल

दिल पर चोट लगे न कोई

आओ मीत मना लें हलबुल।।


नया वर्ष है नयी छवि है

नयी रीति का कोई कवि है

नहीं पूराना कोई यहां पर

देखो नूतन अभ्र अवि है।।


टूटा रिश्ता फिर से जोड़े

सारे बंधन फिर से तोड़े

संग में नूतन वर्ष मनाकर

गलती का सब आकर छोड़े।।


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