STORYMIRROR

Sonal Bhatia Randhawa

Abstract Drama

3  

Sonal Bhatia Randhawa

Abstract Drama

नज़्म मेरी

नज़्म मेरी

1 min
75


पंखों से अल्फ़ाज़ मेरे 

ख़यालों की परवान लिए

आज़ाद परिंदों सी हैं 

हैं सब नज़्म मेरी 

मेरे जज़्बातों के परवाज़ लिए !


एक शजर पर टिकना 

नहीं है फितरत इनकी 

खानाबदोश सी है 

कुछ आदत इनकी 

उड़ती फिरती अपना ही साज लिए 


मंज़िल नहीं कोई तय है 

आवारा सी, बेफ़िक्र, बेबाक़ 

अपनी ही धुन में रहती हैं 

छानती सब दुनिया की ख़ाक

इतराती फिरती है अपना ही ताज लिए


आज़ाद परिंदों सी है

है सब नज़्म मेरी 

मेरे जज़्बातों की परवाज़ लिए !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract