नज़्म मेरी
नज़्म मेरी


पंखों से अल्फ़ाज़ मेरे
ख़यालों की परवान लिए
आज़ाद परिंदों सी हैं
हैं सब नज़्म मेरी
मेरे जज़्बातों के परवाज़ लिए !
एक शजर पर टिकना
नहीं है फितरत इनकी
खानाबदोश सी है
कुछ आदत इनकी
उड़ती फिरती अपना ही साज लिए
मंज़िल नहीं कोई तय है
आवारा सी, बेफ़िक्र, बेबाक़
अपनी ही धुन में रहती हैं
छानती सब दुनिया की ख़ाक
इतराती फिरती है अपना ही ताज लिए
आज़ाद परिंदों सी है
है सब नज़्म मेरी
मेरे जज़्बातों की परवाज़ लिए !