हर सुबह सुनहरा हैं
हर सुबह सुनहरा हैं
घने कोहरे में,
कपट छुपा है,
आकाश की ओर देखो
धुंध गहरा है !
पेट की भूख मिटाने को,
मेहनत पे पहरा है,
साहस की सौंदर्यता का
हर सुबह सुनहरा है !
जो छुपकर बैठा है,
चेहरा उसका मलिन पड़ा है,
जो बाहर निकल पड़ा हैं,
सूरज उसका सखा हो चला है !
ख़ुद से तालमेल बिठाना है,
ख़ुद को ऊपर उठाना है,
परिस्थिति खोदे कितनी भी बड़ी खाई,
साहस को कभी टूटने न देना भाई !!