अनकहे अल्फाज़
अनकहे अल्फाज़
अलबिदाह कहने से आगर किसी भी रिश्तों में से उन लंबे को मिटाया जा सकता है,आगर दीवार के उस पार भटकती हुई अल्फाज़ को पन्नो पर सजाया जा सकता है तो फिर ए बिदाई मेरे लिए एक सबक बनकर रहे जाएगी।
प्यार किसी को जागीर नहीं होती,खुद से भी पूछा करो आखिर ए रिश्ते बनते ही क्यो है?
खुदगर्जी में न जाने हम लोग क्या कुछ कहे जाते हैं पर इंसान वोही देखता है जो उसे दिखाया जाता है,आंखे बंध करके बस खुद से पूछा करो ए अनकहे शब्दो को केसे बयां करोगे?
वक्त से पहले भागना इंसान की फितरत है,चाहे वो कुछ पाने की ख्वाहिश पूरी करने के खातिर हो ए फिर किसी को अपना बनाने की जोश में,पर अपना बनाने से पहले ए जरूर सोच लेना के क्या वो अपने होने की काबिलियत रखता है ?
सुना था मेने कही बार ,पूछा था चांदनी से,चुकाया था कर्जा उसका पर चाहा कुछ भी नही,
अनकही अल्फाज़ जब जोर शोर से हलचल मचा रही थी तो मैंने भी वोही किया जो एक शायर को करना चाहिए था।
अब सफेदी में काले तारे चमकती हुई इस सुनी महफिल में रंग लाती है।
हां में खुश हूं अपने तन्हाई से, क्यों की ए हाँ खुशी भी अपनी और दर्द भी अपने।
