बेगानेपन का एहसास
बेगानेपन का एहसास
हमने तो सब सह कर भी कभी नाराज़गी न जताई,
आपको हर बात पे ही हमारी क्यों नाराज़गी हुई,
हमने तो बस हर हाल में आपको अपना माना,
आपसे क्यों यों हर बार पराया समझने की भूल हुई।
बात बे बात पे यों तानाकशी हर बार करते जाना,
क्यों न हमारी खामोशी पे आपको एतबार आया,
हमने तो बदस्तूर ही सारी रवायतें निभा दी थी,
फिर भी क्यों हमें बेगानेपन का ही एहसास दिलाया।
ज़िन्दगी के हर लम्हें, हर मोड़ पे राह ही तकते रहे,
फिर भी क्यों आपका न ही कोई हमें पैग़ाम आया,
ज़िन्दगी बेमानी है, कब्र तक पहुँच जाने के बाद भी,
फिर भी क्यों हमारा न ही आपको कोई ख़्याल आया।