सिसकी
सिसकी
किसी दुख से
विचलित हो
रोता है अंतर्मन
तो निकलती है सिसकी
मिलने की हो जब
प्रेमी से आकांक्षा
हो न रहा हो मिलन
तो निकलती है सिसकी
पहुंचे जब मन को
किसी बात की चोट
चोट मथता है
तो निकलती है सिसकी
किया न हो
ऐसा कोई काम
फिर भी लग जाये लांछन
तो रोकर निकलती है सिसकी
तन मन का दर्द
होती है सिसकी
स्वस्थ तन मन की
शुद्ध स्वच्छ होती है सिसकी