मिलन की रात
मिलन की रात
कब से था इंतजार इस रात का
बरसों बाद आई इस रात का
शीतल चांदनी और धुंध का सैलाब
आजा प्रिये मेरी बांंहों में रात आज
दूूूर न रहो छुप छुप के न चलो
निगाहों से दूर न जाओ रात आज
हमें और न तडफाओ तुम प्रिये
दे रही कायनात भी साथ रात आज
फलक से धरा तक बिखरी शुभ्र चांदनी
निशब्द है धुंध की रात आज
न करो तुम जुदाई की बात आज
बाहों में समा जाओ रात आज
मिलकर जुदा न हो कभी आज के बाद
जन्मों जन्मों की मिलन की रात आज।

