तुम्हारी याद
तुम्हारी याद
उगता सूरज
ढलती शाम
दोपहर होती
नित्य नयी रात
तुम कब आओगे
जोहती मैं तुम्हारी बाट
स्मृति में तुम्हें
याद कर मुस्काती
तुमसे न जाने
क्या क्या बात कर
कभी लजाती
कभी डर जाती
तुम कुछ बोलते
मैं कुछ बोलती
खलल जब होती
जब पास न होते
स्मृति में खोकर
खूब सपने देखे
न जाने कब होंगे
साकार अपने
करनी है बहुत सी बातें
कुछ अपनी कुछ पराई
पर न जाने तुम
कब आओगे
उगता सूरज
ढलती शाम
दोपहर होती
नित्य नयी रात ।