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कीर्ति जायसवाल

Tragedy

5.0  

कीर्ति जायसवाल

Tragedy

अगर वह एक बार लौट कर आ जाते

अगर वह एक बार लौट कर आ जाते

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तालाब के जल पर एक अस्पष्ट सा,

उन तैरते पत्तों के बीच 

एक प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ा,

तभी जाना... मेरा भी तो अस्तित्व है।


झुर्रियों ने चेहरे पर पहरा देना शुरू

कर दिया था। कुछ गड्ढे थे,

जो चेहरे पर अटके पड़े थे

जिस पर आँखों से गिरी कुछ बूंदे

अपना बसेरा बनाए हुए थीं। 

वह बूंदे पीले रंग की थी।


पत्र शुष्क पड़े थे 

पुष्प झर चुके थे,

मेरी छाँव में कुछ पंछी पले थे,

पर खुलते ही वह आसमान में

कहीं दूर उड़ गए थे।


हालांकि अब छाँव नहीं है,

पर फिर भी... 

अगर वह एक बार लौटकर

आ जाते

अगर वह एक बार लौटकर 

अपनी बाँहों में मुझे समा लेते

अगर वह एक बार आकर प्यार से 

'पिता' कह देते 

तो शायद.... 

पत्ते फिर उमड़ पड़ते

कलियाँ फिर फूट पड़तीं

शुष्क नब्ज़ में ख़ुशियों का

संचार होने लगता

मुझ में चेतना आ जाती।


पर जड़ कमजोर हो चुकी है,

पैर टिक नहीं पा रहें,

अब लोगों के मुँह से भी 

मेरे लिए दुआ के

कुछ

शब्द सुनायी पड़ते हैं 

"जीते जी सबका भला किया,

भगवान इसे अच्छी मौत दे।"


आज शायद भगवान ने

उनकी सुन ली,

बच्चे पास थे मेरे सामने।

उनके सामने एक 'घर' था

जो वर्षों से उनका इंतजार

कर रहा था,

'बगीचे' थे

जो उनके आने के आँखों में

सपने संजोए हुए थे

'ज़मीन' थी

जो उनके कदम की आहट

सुनने के लिए 

कब से व्याकुल थी।


हाँ! आखिर उन्हें भी तो

लौटकर एक दिन इन्हीं 

अपनों के पास आना था।


उन्हें वह घर चाहिए था

जिसकी जगह उन्हें वहाँ

अपना महल बनवाना था।

उन्हें वह बगीचे चाहिए थे

जिसकी जगह उन्हें वहाँ अपना

कारखाना खड़ा करना था,

उन्हें वह ज़मीन चाहिए थी

जिसके जरिए उन्हें करोड़ो

कमाना था।


किनारे पर वहीं खाट

पड़ी हुई थी,

लोगों से घिरा उसी खाट पर मैं

लेटा हुआ था,

शायद उन्होंने मुझे देखा ही नहीं था,

जो कुछ समय पहले ही 

अपनी जायदाद पाने की चाह में

अपनी जायदाद ही सौंप गया...।



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