STORYMIRROR

Aanchal Tyagi

Tragedy

4  

Aanchal Tyagi

Tragedy

धरती की व्यथा

धरती की व्यथा

2 mins
255

एक मां की तरह

उसे भी शक्ति दी ईश्वर ने

धारण करने की

वह बीज को गर्भ में धारण कर सींचती

और काल के साथ कदमताल करते हुए

बीज फलता फूलता उसके साए में

एक दिन बीज पाता अपना जवान रूप

पर उसकी जड़ें अभी भी जुड़ी रहती

उसकी जीवनदायिनी धरती से

कभी कोई किसान फसलों के बीज

धरती में रोपता

तो कभी कोई उस पर हल चलाकर,

मिट्टी को जोतकर तैयार करता

धरती को धारण करने

नया बीज उसके गर्भ में

समय बीतता मौसम बीतते

और फिर वह बीज विकास कर

लहराता अपने यौवन पर

धरती भी कभी


पीपल बरगद की मजबूत जड़ों पर इतराती

तो कभी सरसों के पीले फूलों की छटा

चहुं ओर बिखेर फूली न समाती

किसान भी दिन रैन एक कर

अपने श्रम से उसे लहराता

और घरवालों को भी भरपेट

बढ़िया भोजन खिलाता

फिर अचानक एक दिन

किसान के मन में लालच आया

उसने धरती को समझा अपनी दासी

और अब बीज धरती में रोपकर

संतोष नहीं हुआ उसे

उसने सोचा


क्यों धरती अपने गर्भ में धारण करेगी इसे

अब उसने ज़बरदस्ती करने के इरादे से

रसायनों की परत धरती को उढ़ाई

अब खुश हुआ वो

क्योंकि अब प्रकृति के नियमों की

उसने धज्जियाँ थी उड़ाई

पर शायद अब धरती पर उपजे

सब्जियों फल फूलों पर धरती का

नहीं प्यार था

क्योंकि अब किसान का उद्देश्य

पेट नहीं व्यापार था

वह भूल गया यह बात

की धरती माता है

जो भी उसको चाहिए है

वह इस धरा से ही तो पाता है

धरती भी बहाती अश्क अब

अपनी बदहाली पर

क्योंकि अब बीज से ज्यादा

नीवें रोपी जाने लगी उसके गर्भ में

और पत्थरों से वार किया जाने लगा


उसकी छाती पर

धीरे-धीरे होती गई धरती बंजर

अब नहीं धारण करती वह गर्भ

अपनी मर्जी से

ना अब खुशी-खुशी सींचती है वह

फल फूल सब्जियों को

क्योंकि वह भी तंग आ चुकी है

मानव की खुदगर्जी से

बस धरती अब एक विश्वास

आंखों में समाये बैठी है

फिर आएंगे वे स्वर्णिम दिन

जब वह मुक्त होगी रसायनों से

यह आस लगाये बैठी है

एक बार फिर धारण करेंगी

वह बीज को अपने गर्भ में

और सींचेगी पुनः उसे

अपने प्यार और विश्वास के साथ!!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy