कड़कड़ाती ठण्ड
कड़कड़ाती ठण्ड
"धूप का सुकून ठण्ड से बचने में होता है।
ईश्वर तेरी कृपा अमीर गरीब पर समान होती है।"
शीर्षक-कड़कड़ाती ठण्ड
विडंबना यह है कि कोहरे की सड़क पर सुबह की
ओट में बच्चे काम पर जा रहे है।
गरीबी की फटी किस्मत को ओढ़
कड़कती ठंड में बच्चे काम पर जा रहे है।
नंगे पाँव, फटे हाल, मजबूरियों से बेबस ठिठुरने
खाली पेट, सूनी आँखों से, बिखरे सपनों को
खुशियों को ताक पर रख कर
बच्चे काम पर जा रहे है।
ठिठुरती ठंड में परेशानियों को
भाग्य में संजोये बच्चे काम पर जा रहे है।
जिंदगी में सुकून की धूप को तलाशने
कुछ जरूरत मंद बच्चे काम पर जा रहे है।
ठिठरते कंपकंपाते होंठों से,
दर्द की सिसकियों ने ऐसा सितम कर डाला।
कड़कड़ाते जाड़े में बच्चे
जरूरतों को पूरा करने काम पर जा रहे है।
सड़क के किनारे लाचार चेहरे,
मजबूरियों ढोते, कड़कड़ाते जाड़े ,
निष्ठुर हवाओं को सहते मध्यम धूप की तलाश में बैठे है।
