ग़ज़ल-नफरतों का दौर
ग़ज़ल-नफरतों का दौर
नफरतों के दौर में सब,कुछ चला गया
दिल में था दर्द छुपा, पर कहा न गया
दिल को जिन्होंने दर्द दिया, वो दूसरे नहीं
शायद हम ही गलत थे, वो थे सदा सही
कुछ दूर तक साथ चल कर, हमसे बिछड़ गए
दूसरों की गलती पर वो, हम से लड़ गए
खता न थी मेरी, फिर भी मान ली
उन्होंने तो हमारी जान लेने की ठान ली
इंतिहा की हद तक, हमने किया था प्यार
सारी दुनिया को भूलकर, बनाया था अपना यार
नफरतों के दौर में, सब कुछ बदल गया
बाहर की तेज हवाओं से, मेरा घर जल गया