STORYMIRROR

Abha Chauhan

Abstract Romance Tragedy

3  

Abha Chauhan

Abstract Romance Tragedy

ग़ज़ल-नफरतों का दौर

ग़ज़ल-नफरतों का दौर

1 min
406

नफरतों के दौर में सब,कुछ चला गया

दिल में था दर्द छुपा, पर कहा न गया


दिल को जिन्होंने दर्द दिया, वो दूसरे नहीं

शायद हम ही गलत थे, वो थे सदा सही


कुछ दूर तक साथ चल कर, हमसे बिछड़ गए

दूसरों की गलती पर वो, हम से लड़ गए


खता न थी मेरी, फिर भी मान ली

उन्होंने तो हमारी जान लेने की ठान ली


इंतिहा की हद तक, हमने किया था प्यार

सारी दुनिया को भूलकर, बनाया था अपना यार


नफरतों के दौर में, सब कुछ बदल गया

बाहर की तेज हवाओं से, मेरा घर जल गया



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract