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Rajeev Kumar

Abstract

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Rajeev Kumar

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सावन

सावन

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सावन में हुई धरती सुहानी

हरदम खेल रही है पानी पानी

मर रहे फसलों को मिला जीवन

किसानों के दुःख का हुआ हरण

खेतों की पगडन्डी पे झूमी बालाएं

मन क्यों न झुमे नाचे गाए

प्रेम विरहीणी की उमड़ी अगन

चाहे प्रेयसी, प्रियतम से मिलन

मिट्ठी की गंध से सराबोर कण कण

सावन में प्रदुषण मुक्त वातावरण

सावन में फुहार मचाए हुंकार

आकाश पसारे वर्षा की धार।



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