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Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

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Chandresh Kumar Chhatlani

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सूनी सड़कें

सूनी सड़कें

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सूनी सड़कें रात में मर जाती हैं,

कभी जन्म भी फिर से लेती हैं

चीखों को माँ का दर्द मान के। 


सहन करती है उस दर्द को पूरी प्रकृति

कभी भ्रूण बन के तो कभी अबला बन के। 

ईश्वरीय ऊर्जा अनंत है... लेकिन दर्द भी तो..

हवस का भी अंत कहाँ ?


पाकर अनंत वासना को जानवर बराबर मानव। 

सूनी सड़कें मर जाती हैं कुछ ही घंटों में

जानती है उनका पैदा होना दुखदायी है।


सवेरे ज़िंदा होना ही है...

ताकि पैर और गाड़ियां उसे कुचल सकें...

रातों में उसे कोई नहीं कुचलेगा

रातों में कुचलने तो पैदा किया है ना...नारी को। 


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